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शनिवार, 6 मार्च 2021

भारतीय महिलाओं के क्या है 13अधिकार जानिए संपूर्ण लेख में एडवोकेट अंकिता रा जयसवाल जी के साथ..महिला दिन विशेष लेख

महिला सशक्तीकरण/ महिलाओ के अधिकार/ अंतरराष्ट्रीय महिला दिन विशेष भारतीय महिलाओं को कौन से 13अधिकार प्राप्त होते हैं जानिए पूरे लेख में  एडवोकेट अंकिता रा जयसवाल , BA,LLB,LLM (Cyber Law)सिविल एंड क्रिमिनल कोर्ट वरूड,अमरावती  हाई कोर्ट नागपुर जी ©️®️के साथ.....
दोस्तो, आप सभिको अंतरराष्ट्रीय महिला दिन की ढेर सारी शुभकामनाएं। आज के इस लेख में हम जानेंगे भारतीय महिलाओं के पास क्या क्या अधिकार होते हैं? 
एक तरफ जहां भारत में महिलाओं को देवी माना जाता है और उन्हें पूजा जाता है। लेकिन इन सबसे इतर जो ज्यादा जरूरी है वह है उन्हें उनका अधिकार, सुरक्षा, समाज में दर्जा दिलाया जाए बजाए उनकी पूजा करने के। आज हम आपको महिलाओं के उन अधिकारों के बारे में बताऊंगी जो महिलाओं को समाज में सुरक्षित और बेहतर जीवन जीने की आजादी देते हैं। हालाकि कुछ महिलायें इन सभी चुनौतियों से पार जाकर विभिन्न क्षेत्रों में देश के सम्माननीय स्तरों तक भी पहुंची हैं, जिनमें श्रीमती इंदिरा गांधी, प्रतिभादेवी सिंह पाटिल, सुषमा स्वराज, निर्मला सीतारमण, महादेवी वर्मा, सुभद्राकुमारी चौहान, अमृता प्रीतम, महाश्वेता देवी, लता मंगेशकर, आशा भोषले, श्रेया घोषाल, सुनिधि चौहान, अल्का याज्ञनिक, सुश्री मायावती, जयललिता, ममता बनर्जी, मेधा पाटकर, अरुंधती रॉय, चंदा कोचर, पी.टी. ऊषा, साइना नेहवाल, सानिया मिर्जा, साक्षी मलिक, पी. वी. सिंधू, हिमा दास, झूलन गोस्वामी, स्मृति मंधाना, मिथाली राज, हरसन प्रीत कौर, गीता फोगाट तथा मैरी कॉम आदि नाम उल्लेखनीय हैं।
भारत जैसे पुरुष-प्रधान देश में 70 के दशक से महिला सशक्तिकरण तथा फेमिनिज्म शब्द प्रकाश में आये। जिनमें 1990 के भूण्डलीकरण तथा उदारवाद के बाद विदेशी निवेश द्वारा स्थापित गैर-सरकारी संगठनों के रूप में अभूतपूर्व तेजी आई। इन संगठनों ने भी महिलाओं को जागृत कर उनमें उनके अधिकारों के प्रति चेतना विकसित करने तथा उन्हें सामाजिक/ आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में महती भूमिका अदा की है। साथ ही मुस्लिम महिलाओं में प्रचलित निकाह- हलाला, तथा तीन तलाक जैसे पुरातनपंथी धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ कानूनी लड़ई लड़ने में मदद की है। हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर-प्रदेश आदि में कन्या-भ्रूण हत्या को रोककर लिंग अनुपात के घटते स्तर को संतुलित करने तथा शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति सुधारने के प्रक्रम को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार द्वारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना चलाई जा रही है। 
स्त्री- सुरक्षा और समता में उठाया गया हमारा प्रत्येक कदम किसी न किसी हद तक स्त्रियों की दशा सुधारनें में कारगर साबित हो रहा है, इसमें कोई दोराय नहीं, किंतु सामाजिक सुधार की गति इतनी धीमी है कि इसके यथोचित परिणाम स्पष्ट रूप से सामने नहीं आ पाते। हमें और भी द्रुत गति से इस क्षेत्र में जन-जागृति और शिक्षा पहुंचाने का कार्य करने की आवश्यकता है। शिक्षा सभी दोषों से छुटकारा दिलाने का आधारभूत साधन है। एक शिक्षित स्त्री न केवल अपना बल्कि परिवार की परिवार की तीन पीढ़ियों का सर्वतोभद्र कल्याण कर सकती है। इसलिए शिक्षा को केन्द्र बनाकर तथा समुचित साधन और कानूनों का पालन सुनुश्चित करके देश को महिला अपराध मुक्त बनाया जा सकता है।
आजादी के बाद के वर्षों में महिलाओं के लिए समान अधिकार ( अनुच्छेद-14), राज्य द्वारा कोई भेदभाव नही करने( अनु.-15), अवसरों की समानता ( अनु.-16), समान कार्य के लिए समान वेतन ( अनु.-39), अपमानजनक प्रथाओं के परित्याग के लिए ( अनु.- 51(ए)(ई)), प्रसूति सहायता के लिए ( अनु.- 42) जैसे आदि अनेक प्रावधान भारतीय संविधान में किए गये। इसके अतिरिक्त अनैतिक व्यापार( निवारण) अधिनियम 1956, दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961, कुटुम्ब न्यायालय अधिनियम 1984, महिलाओं का अशिष्ट रूपण ( प्रतिषेध) अधिनियम 1986, सती निषेध अधिनियम 1987, राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990, गर्भधारण पूर्वलिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम 1994, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005, बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006, कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीड़न ( प्रतिषेध) अधिनियम 2013, दण्डविधि (संशोधन) 2013 भारतीय महिलाओं को अपराधों के विरुध्द सुरक्षा प्रदान करने तथा उनकी आर्थिक एवं सामाजिक दशा में सुधार करने के लिए बनाये गए प्रमुख कानूनी प्रावधान हैं। कई राज्यों की ग्राम व नगर पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों का प्रावधान भी किया गया है।
विडम्बना तो यह है कि इतने सारे कानूनी प्रावधानों के होने के बावजूद देश में महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों में कमी होने की बजाय वृध्दि हो रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो(  NCRB के अनुसार पिछले 10 वर्षों में महिलाओं के विरुध्द हुए अत्याचारों में दो- गुने से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है। इस संबंध में देश में हर घंटे करीब 26 आपराधिक मामले दर्ज किए जाते हैं। यह स्थिति बेहद ही भयावह है। इसके अतिरिक्त कई अन्य चिंतायें भी जैसे- स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक सरोकार, घर के महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने में भूमिका की कमी, दोहरा सामाजिक रवैया, प्रशिक्षण का अभाव, पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता, गरीबी एवं धार्मिक प्रतिबंध शामिल हैं। 

आइए जानते है महिलाओ को कौनसे अधिकार प्राप्त है,
1) जीरो एफआईआर का अधिकार := रेप पीड़िता महिला किसी भी पुलिस स्टेशन पर अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार कोई भी पुलिस स्टेशन रेप पीड़िता को यह कहकर वापस नहीं कर सकता है कि यह मामला उसकी सीमा के बाहर का है।
2) पुलिस स्टेशन पर नहीं बुलाये जाने का अधिकार:,=
सीआरपीसी की धारा 160 के तहत महिलाओं को पुलिस स्टेशन पर पूछताछ के लिए नहीं बुलाया जा सकता है। पुलिस महिला कॉस्टेबल या महिला के परिवार के सदस्य या उसकी महिला मित्र की उपस्थिति में महिला के घर पर ही उससे पूछताछ कर सकती है। महिला की तलाशी केवल महिला पुलिसकर्मी ही ले सकती है। महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले पुलिस हिरासत में नहीं ले सकती। अगर महिला को कभी लॉकअप में रखने की नौबत आती है, तो उसके लिए अलग से व्यवस्था होगी। बिना वॉरंट गिरफ्तार महिला को तुरंत गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी होगा और उसे जमानत संबंधी अधिकार के बारे में भी बताना जरूरी है। गिरफ्तार महिला के निकट संबंधी को सूचित करना पुलिस की ड्यूटी है। सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में कहा गया है कि जिस जज के सामने महिला को पहली बार पेश किया जा रहा हो, उस जज को चाहिए कि वह महिला से पूछे कि उसे पुलिस हिरासत में कोई बुरा बर्ताव तो नहीं झेलना पड़ा।बड़े अपराध की स्थिति में भी पुलिस को मजिस्ट्रेट की अनुमति का पत्र लानाआवश्यक है।
3) फ्री में कानून सलाह := पुलिस स्टेशन पर शिकायत करने गयी महिला को फ्री में कानूनी सलाह प्राप्त करने का अधिकार है। महिलाओं को फ्री लीगल ऐड दिए जाने का प्रावधान है। अगर कोई महिला किसी केस में आरोपी है तो वह फ्री कानूनी मदद ले सकती है। वह अदालत से गुहार लगा सकती है कि उसे मुफ्त में सरकारी खर्चे पर वकील चाहिए। महिला की आर्थिक स्थिति कुछ भी हो, लेकिन महिला को यह अधिकार मिला हुआ है कि उसे फ्री में वकील मुहैया कराई जाए। पुलिस महिला की गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता कमिटी से संपर्क करेगी और महिला की गिरफ्तारी के बारे में उन्हें सूचित करेगी। लीगल ऐड कमिटी महिला को मुफ्त कानूनी सलाह देगी।
4) मैटरनिटी लीव का अधिकार :=  संविधान के अनुच्छेद-42 के तहत महिला सरकारी नौकरी में है या फिर किसी प्राइवेट संस्था में काम करती है, उसे मैटरनिटी लीव लेने का हक है। इसके तहत महिला को 12 हफ्ते की मैटरनिटी लीव मिलती है, जिसे वह अपनी जरूरत के हिसाब से ले सकती है। इस दौरान महिला को पूरी सैलरी और भत्ता दिया जाएगा। अगर महिला का अबॉर्शन हो जाता है तो भी उसे लाभ मिलेगा। इसके अलावा वह अपनी नौकरी के दौरान बच्चे के 18 साल के होने तक कभी भी दो साल की छुट्टी ले सकती है। मैटरनिटी लीव के दौरान महिला पर किसी तरह का आरोप लगाकर, उसे नौकरी से नहीं निकाला जा सकता। अगर महिला का एम्प्लॉयर इस बेनिफिट से उसे वंचित करने की कोशिश करता है तो महिला इसकी शिकायत कर सकती है। महिला कोर्ट जा सकती है और दोषी को एक साल तक कैद की सजा हो सकती है।
5)समान वेतन का अधिकार/ वर्कप्लेस पर अधिकार:= 
समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 समान कार्य के लिए पुरुष और महिला को समान भुगतान का प्रावधान करता है। यह भर्ती वसेवा शर्तों में महिलाओं के खिलाफ लिंग के आधार पर भेदभाव को रोकता है।  वर्क प्लेस पर भी महिलाओं को कई तरह के अधिकार मिल हैं। यौन शोषण से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में गाइडलाइंस तय की थीं। इसके तहत महिलाओं को प्रोटेक्ट किया गया है। सुप्रीम कोर्ट की यह गाइडलाइंस सरकारी व प्राइवेट दफ्तरों में लागू है। सुप्रीम कोर्ट ने 12 गाइडलाइंस बनाई हैं। एंप्लॉयर या अन्य जिम्मेदार अधिकारी की ड्यूटी है कि वह यौन शोषण को रोके। यौन शोषण के दायरे में छेड़छाड़, गलत नीयत से टच करना, यौन शोषण की डिमांड या आग्रह करना, महिला सहकर्मी को पॉर्न दिखाना, अन्य तरह से आपत्तिजनक व्यवहार करना या फिर इशारा करना आता है। इन मामलों के अलावा, कोई ऐसा ऐक्ट जो आईपीसी के तहत ऑफेंस है, की शिकायत महिला कर्मी द्वारा की जाती है, तो एंप्लॉयर की ड्यूटी है कि वह इस मामले में कार्रवाई करते हुए संबंधित अथॉरिटी को शिकायत करे।
6) किसी भी समय शिकायत का अधिकार/इंटरनेट के माध्यम से शिकायत का अधिकार := महिलायें समाज में परिवार की इज्जत, रिश्तेदारों से मिलने वाली धमकी सहित तमाम वजहों से पुलिस से मामले की शिकायत सही समय पर नहीं करती हैं। लेकिन अगर महिलाये किसी भी समय चाहे तो इन मामलों में अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं और पुलिस उन्हें यह कहकर लौटा नहीं सकती है कि शिकायत काफी देर से की जा रही है। अगर किसी वजह से महिलायें पुलिस स्टेशन शिकायत दर्ज कराने नहीं जा सकती हैं तो वह ई मेल या रजिस्टर्ड पोस्ट के जरिए अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं। महिलायें डीसीपी स्तर या किसी भी अधिकारी को शिकायत भेज सकती हैं, जिसके बाद अधिकारी संबंधित पुलिस स्टेशन पर मामला भेज देते हैं। साथ ही इस बात का निर्देश देते हैं कि मामले में उचित कार्यवाही की जाए।
7)गोपनीयता का अधिकार/पहचान की गोपनीयता का अधिकार := बलात्कार पीड़िता महिला को यह अधिकार है कि वह गोपनीय तरीके से अपना बयान दर्ज कराये। उसे अधिकार है कि बिना किसी और की उपस्थिति में मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज करा सकती है। वह चाहे तो महिला पुलिसकर्मी या अन्य पुलिस अधिकारी को अकेले में अपना बयान दे सकती है। सीआरपीसी की धारा 164 के तहत महिला को अधिकार है। किसी भी स्थिति में महिला की पहचान को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। किसी भी सूरत में ना तो पुलिस और ना ही मीडिया महिला की पहचान को सार्वजनिक कर सकती है। आईपीसी की धारा 228-ए के तहत महिलाओं को यह अधिकार देता है। ऐसा करना कानूनी अपराध है।
8) मेडिकल के क्षेत्र में अधिकार:=  महिला के साथ रेप हुआ है या नहीं वह मेडिकल टेस्ट से ही साबित होता है। कानून के अनुसार धारा 162-ए के तहत महिला का मेडिकल टेस्ट कराया जाना आवश्यक है। महिला को मेडिकल रिपोर्ट की कॉपी पाने का अधिकार है। रेप एक अपराध है नाकि कोई मेडिकल टर्म, ऐसे में डॉक्टर को सिर्फ यह बयान देने का अधिकार है कि महिला के साथ संबंध स्थापित किया गया है अथवा नहीं। ऐसे में डॉक्टर के पास यह अधिकार नहीं होता है कि वह इस बात का फैसला करे कि रेप हुआ है या नहीं।
बलात्कार के मामले जिसमें पीड़िता की मौत हो जाए या कोमा में चली जाए, तो फांसी की सजा का प्रावधान किया गया। रेप में कम से कम 7 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है। रेप के कारण लड़की कोमा में चली जाए या फिर कोई शख्स दोबारा रेप के लिए दोषी पाया जाता है तो मामले में फांसी की सजा का प्रावधान है।
9) शारीरिक शोषण से मुक्ति का अधिकार:= किसी भी कंपनी या संस्था में काम करने वाली महिलाओं की सुरक्षा को पाने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार सभी सरकारी या गैरसरकारी संस्थाओं में एक कमेटी होनी चाहिए जिसका जिम्मा एक महिला के हाथ में होना चाहिए जो इन मामलों की सुनावाई करे। कमेटी में 50 फीसदी महिलाओं का होना भी आवश्यक है। दहेज प्रताड़ना और ससुराल में महिलाओं पर अत्याचार के दूसरे मामलों से निबटने के लिए कानून में सख्त प्रावधान किए गए हैं। महिलाओं को उसके ससुराल में सुरक्षित वातावरण मिले, कानून में इसका पुख्ता प्रबंध है। दहेज प्रताड़ना से बचाने के लिए 1986 में आईपीसी की धारा 498-ए का प्रावधान किया गया है। इसे दहेज निरोधक कानून कहा गया है। अगर किसी महिला को दहेज के लिए मानसिक, शारीरिक या फिर अन्य तरह से प्रताड़ित किया जाता है तो महिला की शिकायत पर इस धारा के तहत केस दर्ज किया जाता है। इसे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। साथ ही यह गैर जमानती अपराध है। दहेज के लिए ससुराल में प्रताड़ित करने वाले तमाम लोगों को आरोपी बनाया जा सकता है।
10) स्त्रीधन का अधिकार := महिला को शादी के वक्त उपहार के तौर पर कई चीजें दी जाती हैं, जिसे स्‍त्री धन कहते हैं। इन पर लड़की का पूरा हक होता है। इसके अलावा, वर-वधू को कॉमन यूज की तमाम चीजें दी जाती हैं, ये भी स्त्रीधन के दायरे में आती हैं। स्त्रीधन पर लड़की का पूरा अधिकार होता है। अगर ससुराल ने महिला का स्त्रीधन अपने पास रख लिया है तो महिला इसके खिलाफ आईपीसी की धारा-406 (अमानत में खयानत) की भी शिकायत कर सकती है। इसके तहत कोर्ट के आदेश से महिला को अपना स्त्रीधन वापस मिल सकता है।

11) लीव इन रिलेशन में रहने वाली महिला का अधिकार:=  लिव-इन रिलेशन में रहने वाली महिला को घरेलू हिंसा कानून के तहत प्रोटेक्शन का हक मिला हुआ है। अगर उसे किसी भी तरह से प्रताड़ित किया जाता है तो वह उसके खिलाफ शिकायत कर सकती है। लिव इन में रहते हुए उसे राइट-टू-शेल्टर भी मिलता है। यानी जब तक यह रिलेशनशिप कायम है, तब तक उसे जबरन घर से नहीं निकाला जा सकता। लेकिन संबंध खत्म होने के बाद यह अधिकार खत्म हो जाता है। लिव-इन में रहने वाली महिलाओं को गुजारा भत्ता पाने का भी अधिकार है, लेकिन पार्टनर की मौत के बाद उसकी संपत्ति में अधिकार नहीं मिल सकता। यदि लिव-इन में रहते हुए पार्टनर ने वसीयत के जरिये संपत्ति लिव-इन पार्टनर को लिख दी है तो मृत्यु के बाद संपत्ति पार्टनर को मिल जाती है। 
12) संपति में  अधिकार :=  पिता की पुश्तैनी संपत्ति में पूरा अधिकार मिला हुआ है। अगर लड़की के पिता ने खुद बनाई संपति वसीयत नहीं की है, तब उनकी मौत के बाद प्रॉपर्टी में लड़की को भी उतना ही हिस्सा मिलेगा, जितना लड़के को और उनकी मां को। शादी के बाद भी महिला का यह अधिकार बना रहता है। कोई भी महिला अपने हिस्से की पैतृक संपत्ति और खुद अर्जित संपत्ति को बेच सकती है। इसमें कोई दखल नहीं दे सकता। महिला इस संपत्ति का वसीयत कर सकती है। महिला उस संपति से बच्चो को बेदखल भी कर सकती है। महिलाओं को अपने पिता के घर या फिर अपने पति के घर सुरक्षित रखने के लिए डीवी ऐक्ट (डोमेस्टिक वॉयलेंस ऐक्ट) का प्रावधान किया गया है। 
 13) स्त्री भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार := मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 मानवीयता और चिकित्सा के आधार पर पंजीकृत चिकित्सकों को गर्भपात का अधिकार प्रदान करता है। लिंग चयन प्रतिबंध अधिनियम, 1994 गर्भधारण से पहले या उसके बाद लिंग चयन पर प्रतिबंध लगाता है। यही कानून कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए प्रसव से पहले लिंग निर्धारण से जुड़े टेस्ट पर भी प्रतिबंध लगाता है। महिला की सहमति के बिना उसका अबॉर्शन नहीं कराया जा सकता। जबरन अबॉर्शन कराने पर सख्त कानून बनाए गए हैं। कानून के मुता‌बिक, अबॉर्शन तभी कराया जा सकता है, जब गर्भ की वजह से महिला की जिंदगी खतरे में हो। 1971 में इसके लिए एक अलग कानून बनाया गया- मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी ऐक्ट। इसके तहत अगर गर्भ के कारण महिला की जान खतरे में हो या फिर मानसिक और शारीरिक रूप से गंभीर परेशानी हो या गर्भ में पल रहा बच्चा विकलांगता का शिकार हो तो अबॉर्शन कराया जा सकता है। इसके अलावा, अगर महिला मानसिक या फिर शारीरिक तौर पर इसके लिए सक्षम न हो भी तो अबॉर्शन कराया जा सकता है। अगर महिला के साथ बलात्कार हुआ हो और वह गर्भवती हो गई हो या फिर महिला के साथ ऐसे रिश्तेदार ने संबंध बनाए जो वर्जित संबंध में हों और महिला गर्भवती हो गई हो तो महिला का अबॉर्शन कराया जा सकता है। अगर किसी महिला की मर्जी के खिलाफ उसका अबॉर्शन कराया जाता है, तो ऐसे में दोषी पाए जाने पर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।
दोस्तों इस तरह से हमारे भारत में महिलाओं को कई अधिकार प्राप्त होते हैं आशा करती हूं इस लेख में मैं आप सभी को संक्षिप्त में महिलाओं के अधिकार के बारे में जागरूक कराने में सक्षम रही आप सभी को यह लेख अच्छा लगा तो प्लीज कमेंट करें और ज्यादा से ज्यादा शेयर करें साथ ही कंटेंट कॉपी ना करें ऐसे ही अपडेट पाने के लिए मेरे फेसबुक पेज लीगल अवेयरनेस टॉक बाय एडवोकेट अंकिता रा जयसवाल को विजिट करें।

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